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Writer's pictureAham Brahmasmi

राजनारायण दुबे और बॉम्बे टॉकीज़ की कहानी - चाफेकर बन्धु - अध्याय 3


चाफेकर बन्धु

भारत माँ के वीर बलिदानी देशभक्त - चाफेकर बन्धु


मूल रूप से कोंकण निवासी हरीभाऊ चाफेकर बरसों, पुणे के पास चिन्चवड़ में आकर बस गए थे। चितपावन ब्राह्मण समाज के हरीभाऊ पूजापाठ और भजन कीर्तन करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे। उनकी तीन सन्तानों में बड़े बेटे दामोदर जन्म १८७० में, उससे छोटे बेटे बालकृष्ण का जन्म १९७३ में और छोटे बेटे वासुदेव का जन्म १८७९ में हुआ था। पिता की हार्दिक इक्छा थी कि उनके तीनों बेटे पढ़ लिख कर कोई अच्छा काम करें। मगर तीनो बेटो का पढ़ाई में मन नहीं लगता था।

Chapekar brothers (चाफेकर बंधु)

वह बस साधारण सी ही पढ़ाई कर सके और पिता के साथ भजन कीर्तन में उन्हें सहयोग देने लगे थे। उन दिनों पुणे कई अपवादों की जन्मस्थल बना हुआ था, उन्हीं में एक थी देशभक्ति। तीनों चाफेकर भाइयों में भी देशभक्ति का जुनून जागा तो उन्होंने शारीरिक ताकत के लिए एक केन्द्र स्थापित किया। इसी केन्द्र में 'बॉम्बे टॉकीज़ घराना' के प्रेरणास्रोत एवं 'द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़' के जनक राजनारायण दूबे के दादा ब्रह्मदेव दूबे द्वारा चाफेकर बन्धुओं समेत कई देशभक्तों को शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाने लगा।

बाद में ब्रिटिश सरकार के अफसर जनरल रैण्ड समेत एक अन्य अफसर की हत्या के आरोप में चाफेकर बन्धुओं को फांसी पर चढ़ा दिया गया। पुणे और चिंचवड़ में आज चाफेकर बन्धुओं के नाम पर कई ब्लड बैंक एवं ट्रस्ट है|


 

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