top of page
Search
Writer's pictureAham Brahmasmi

संस्कृत सेमिनार में आज़ाद ने समझाया तुलसी का महात्म्य


International Brand Ambassador Megastar Aazaad ​​

संस्कृत पुनरुथान के महानायक मेगास्टार आज़ाद ने संस्कृत के सम्मलेन में कहा कि तुलसी और क्रिसमस ट्री की कोई तुलना नहीं हो सकती ,क्यों कि क्रिसमस ट्री कृत्रीम है और तुलसी दैवीय है |

तुलसी पूर्ण आध्यात्मिक और परम पवित्र वृक्ष है, हम सब तुलसी को माता के रूप में पूजते हैं। आयुर्वेद में तुलसी के औषधीय गुणों का जितना लाभ है वो शायद ही किसी अन्य वृक्ष का होगा?

भगवान श्री विष्णु की अर्धांगिनी के रूप में माता तुलसी प्रतिष्ठित हैं, इस आधार पर संपूर्ण हिंदुओं की तुलसी उपास्य जननी हैं।


सभी सनातनियों को ज्ञात हो कि कृत्रीम क्रिसमस ट्री की पूजा स्वयं इसाई भी नहीं करते हैं अपितु उसे सजाते हैं। ईसाई धर्म एकेश्वरवादी है, वे जीसस क्राइस्ट को भी परमात्मा नहीं अपितु परमात्मा का पुत्र मानते हैं।

हम सब जबरदस्ती क्रिसमस ट्री के स्थान पर माता तुलसी को प्रतिष्ठित करने का प्रयास कर रहे हैं, एक जगत जननी है दूसरी सिर्फ सजाने वाली सामग्री।


माता तुलसी और क्रिसमस में कोई समानता नहीं है। हिंदुओं को इस तरीके के आचरण से बचना चाहिए और अपने धर्म के प्रतीकों को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए।

तुलसी पूजन 25 दिसंबर को नहीं देवोत्थान एकादशी को होता है |


माता तुलसी की पूजा देव उठानी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा के दिन मुख्य रूप से होता है, वैसे तो प्रत्येक हिंदू परिवार माता तुलसी की पूजा प्रतिदिन सुबह-शाम करता है। हमारे हर त्यौहार संवत्सर के तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं। हम ईस्वी के दिनांक को भारतीय दिनांक नहीं मानते हैं, इस आधार पर भी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन नहीं हो सकता।


अगर आप क्रिसमस ट्री के स्थान पर तुलसी पूजन की पद्धति चलाना चाहते हैं तो यह धर्म विरोधी भी है और अवैज्ञानिक भी। हिंदू धर्म किसी भी अवैज्ञानिक पर्व को मान्यता नहीं देता। हम सबको इन अवैज्ञानिक त्योहारों से बचना चाहिए।


25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाना देव उठानी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा के तुलसी महोत्सव को चुनौती देना है और मूर्खता भी। हमारी आने वाले पीढ़ी को अपने ज़ड़ों से जुड़ना होगा अपने संस्कृती , सभ्तया और परंपरा को जानना होगा और अपने त्योहारों की वैज्ञानिकता को समझना होगा।


भारतीय ज्ञान से प्रभावित संत ईसा मसीह ने भारत में 12 वर्षों तक तपस्या किया, योग साधना किया और भारतीय दर्शनों का अध्ययन किया। इसके बाद यहां से जाकर उन्होंने अपने देश में धर्म का प्रचार प्रारंभ किया। वह संत थे, लेकिन उनका रास्ता विज्ञान सम्मत नहीं था, इसलिए भारत ने उन्हें मान्यता नहीं दी।

International Brand Ambassador Megastar Aazaad ​​

हमारे समाज के दबे कुचले लोगों को बहला-फुसलाकर झूठ और दंभ के सहारे ईसाई बनाने का क्रम कुछ ईसाई मिशनरियां चला रही है। उन्हें रोकने के साथ ही धर्मांतरित हो रहे लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास भी हमें करना होगा। किसी का विरोध न होने पर उसे फलने फूलने का मौका मिलता है

जब हम किसी पर्व या किसी व्यक्ति किसी विचार का विरोध नहीं करते हैं तब वह पर्व, विचार और व्यक्ति प्रचारित होता है। सनातन धर्म की मजबूती के लिए हम में पुरे देश में सांस्कृतिक जन जागरण करना होगा |


3 views0 comments

Commentaires


bottom of page